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भगवान् नृसिंहदेव
वैष्णव सम्प्रदाय में भगवान् नृसिंह देव का बहुत महत्त्व है। भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक अवतार नृसिंह देव का है। नृसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। हिरण्यकशिपु का बड़ा ही दुष्ट असुर था जो निर्दोषो को, संतो को यहाँ तक की स्वम अपने पुत्र को भी समेत करने के लिए तत्पर रहता था क्योकि उसका पुत्र भगवन विष्णु को ही सर्वत्र देखा करता, उन्ही के नामो का हरिनाम किया करता था। जिसकी वजह से दैत्यों राज हिरण्यकशिपु अपने पुत्र को मरना चाहता था। लेकिन अपने अंत समय तक वो भगवान् विष्णु के भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नही कर पाया और भगवान् के हाथो भगवत धाम को पधारा।
हिरण्यकशिपु का वध
भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए। नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया, किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ। तब उसने प्रह्लाद को मारने के लिए षड्यंत्र रचे, किंतु वह सभी में असफल रहा। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था। अपने सभी प्रयासों में असफल होने पर क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती, परंतु जब प्रह्लाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई, किंतु प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया। उसकी प्रजा भी अब भगवान विष्णु की पूजा करने लगी थी। तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता- "तेरा भगवान कहाँ है?" इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि "प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं।" क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि "क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खंभे) में भी है?" प्रह्लाद ने हाँ में उत्तर दिया। यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया। तभी खंभे को चीरकर श्रीनृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया। श्रीनृसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। अत: इस कारण से इस दिन को "नृसिंह जयंती-उत्सव" के रूप में मनाया जाता है।
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भगवान् नृसिंहदेव
वैष्णव सम्प्रदाय में भगवान् नृसिंह देव का बहुत महत्त्व है। भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक अवतार नृसिंह देव का है। नृसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। हिरण्यकशिपु का बड़ा ही दुष्ट असुर था जो निर्दोषो को, संतो को यहाँ तक की स्वम अपने पुत्र को भी समेत करने के लिए तत्पर रहता था क्योकि उसका पुत्र भगवन विष्णु को ही सर्वत्र देखा करता, उन्ही के नामो का हरिनाम किया करता था। जिसकी वजह से दैत्यों राज हिरण्यकशिपु अपने पुत्र को मरना चाहता था। लेकिन अपने अंत समय तक वो भगवान् विष्णु के भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नही कर पाया और भगवान् के हाथो भगवत धाम को पधारा।
हिरण्यकशिपु का वध
भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए। नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया, किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ। तब उसने प्रह्लाद को मारने के लिए षड्यंत्र रचे, किंतु वह सभी में असफल रहा। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था। अपने सभी प्रयासों में असफल होने पर क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती, परंतु जब प्रह्लाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई, किंतु प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया। उसकी प्रजा भी अब भगवान विष्णु की पूजा करने लगी थी। तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता- "तेरा भगवान कहाँ है?" इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि "प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं।" क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि "क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खंभे) में भी है?" प्रह्लाद ने हाँ में उत्तर दिया। यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया। तभी खंभे को चीरकर श्रीनृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया। श्रीनृसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। अत: इस कारण से इस दिन को "नृसिंह जयंती-उत्सव" के रूप में मनाया जाता है।
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The messaging service and social-media platform owes creditors roughly $700 million by the end of April, according to people briefed on the company’s plans and loan documents viewed by The Wall Street Journal. At the same time, Telegram Group Inc. must cover rising equipment and bandwidth expenses because of its rapid growth, despite going years without attempting to generate revenue.

That growth environment will include rising inflation and interest rates. Those upward shifts naturally accompany healthy growth periods as the demand for resources, products and services rise. Importantly, the Federal Reserve has laid out the rationale for not interfering with that natural growth transition.It's not exactly a fad, but there is a widespread willingness to pay up for a growth story. Classic fundamental analysis takes a back seat. Even negative earnings are ignored. In fact, positive earnings seem to be a limiting measure, producing the question, "Is that all you've got?" The preference is a vision of untold riches when the exciting story plays out as expected.

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